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हिन्दुस्तानी खुश हुआ

Jeevan nama
Jeevan nama
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हिन्दुस्तानी खुश हुआ क्योकि इप्सास के सर्वेक्षण ने हमे धरती पर बसने वाले इंसानों में सर्वाधिक खुशहाल पाया है। भला हो कम्पनी का कि उसने हमें आने वाले समय में एक नये त्योहार हैप्पी डे का सौगात दे दिया। फिर हमारी खुशियाँ तो और बढेंगी। खुश होने के लिए हमने प्रतिवर्ष सैकड़ो त्योहार बनाया है, उस तरह की सामाजिक संरचना क़ी है, लोगो मे फुलप्रूफ(पूर्ण आवरणीय) संस्कार डाला है। इस बात से अपने को हमसे बेहतर मानने वाले दुनिया के लोग जल उठेंगे। ये पश्चिमी खाओ-पिओ मौज मनाओ वाले क्या जानें कि हम; भूखे रहो, प्यासे रहो और दुखी रहो; को देखकर भी बहुत खुश होते हैं। स्वयं दुखी रहने पर भी हम दूसरों से यही कहते हैं कि बहुत खुश हूँ । हमारे ऋषि मुनि भी यही कहते रहे हैं कि सर्वे भवन्तु सुखिनः। फिर हम खुश क्यों न हों। इतनी आसानी से क्यों बताएं कि हम दुखी हैं, यदि बता भी दें तो सुनने वाला और खुश हो जायेगा क्यों कि हम सब भारतीय हैं।
बाबा तुलसी ने लिखा है- ऊंच निवास नीच करतूती,देखि न सकहि पराई विभूति। सर्वेक्षण से यह बात सामने आई है कि मक्सिको, इंडोनेसिया, ब्राजील के लोग भी हमारे जैसे ही खुश हैं । जानना होगा कि उनकी जीवन शैली,रस्मो -रिवाज एवं परंपरा हमारे समान तो नही हैं? अवश्य ही वे लोग भारत के विश्व धर्म गुरु होने में आस्थावान होंगे । यदि ऐसा नही है तो सर्वे में कोई समस्या अवश्य है, क्योकि हिन्दुस्तानी कई सतह खुलने के बाद अपनी बात स्पष्ट कर पाते हैं । संवाद देखिये :-
राम आसरे : नमस्ते राम भरोसे भैया।
राम भरोसे : नमस्ते-नमस्ते, कैसे हो ।
‘बहुत बढ़िया सब कुशल मंगल है, आप कैसे है?’
‘प्रभु कृपा है, मौज मस्ती से कट रहा है ।’
‘और बताइए भैया ‘
‘पम्प ख़राब होने से फसल बैठ गयी है,परेशान हूँ कि अगली फसल तक पशु-परिवार का भरण पोषण कैसे चलेगा? कहीं से कर्ज मिल जाय तो बात बने।’
‘अरे भैया! यह तो बड़ा दुखद है। समय ही ख़राब चल रहा है। क्या कहूँ? मेरा बेटा भी शहर से कुछ कमा लाता था, अच्छा चल रहा था परन्तु सेठ ने उसे परसों नौकरी से निकल दिया। अब क्या होंगा?’
‘कोई बात नही। प्रभु सब ठीक कर देंगे। हमें हौसला रखना चाहिए।’
‘अच्छा भैया नमस्ते। घर में सब को बता दीजियेगा कि कुशल-मंगल है । हम सब खुश हैं।’
‘तुम भी।’
विचार करने की बात है कि इनका दुख कई परत आवरण के अन्दर है और बाहरी परत पर ठीक-ठाक और कुशल-मंगल विराजमान है ।
राम आसरे, राम भरोसे, राम आशीष, प्रभु कृपा जैसे हजारों भारतीय नाम भी खुश रहने के सन्दर्भ में बड़े ही प्रासंगिक हैं।

अंततः :-
ख़ुशी जीवन की सबसे सुन्दर अनुभूति है। यह कहीं भी मिले, कैसे भी मिले, स्वप्न में मिले या यथार्थ में मिले, हमे पाना चाहिए। मकरंद पाने के लिए भँवरा न काँटों की, न दिन की, न रात की और न ही जान की परवाह करता है। उसे तो बस मकरंद/पराग की चाहत होती है। अपनी ख़ुशी को दूसरो से साझा करना भी एक सद्कर्म है।

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