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नव-भारत का नव बसंत

Jeevan nama
Jeevan nama
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कुछ -एक दिन पहले मुहल्ले के लडके सरस्वती -पूजा हेतु चंदा मांगने आये तो पता चला कि बसंत आ गया है।यूँकि बसंतपंचमी को माँ वाणी की पूजा-वंदना जो होती है।शहर में सरस्वती-पूजा के नाम पर चंदा माँगा जाना बसंतागमन का एक पक्का लक्षण है।दूजे मुझे प्रातः घूमते समय एक भवन निर्माण केलिए ख़ाली पड़े प्लाट मे एकलौता फूला हुआ सरसों का पेड़ दिख गया जो सदियों से ऋतुराज के आने का प्रबल प्राकृतिक संकेत रहा है । टेसू तो कही दिखता नही। बड़ा अच्छा हुआ हेमंत ऋतु का बस-अंत हो गया। इस वर्ष इसने पूरे उत्तर भारत मे जबरदस्त गुरिल्ला लड़ाई लड़ी। मौसम विज्ञानी परेशान होगये। एक विक्षोभ आया; आगे बढ़ा कि पीछे से दूसरे ने अफगानिस्तान,पाकिस्तान या हिमालय होते हुए हाड़कपाऊ ठण्ड ,बरसात , बदली ,तूफानी बिजली और ओलावृष्टि द्वारा बारबार जीवजीवन त्रस्त कर दिया। लोग यहाँ तक कहने लगे कि इस वर्ष ठण्ड से चैत्र (मार्च) तक छुटकारा नही मिलने वाला है । मन निराश होने लगा था कि यदि हेमंत का साम्राज्य बढ़ा तो ऋतुराज का क्या होगा।
सत्ता (ऋतु ) परिवर्तन कर प्रकृति ने यह प्रमाण दे दिया कि उससे व्यवस्थित ऋतुए समयबद्ध हैं। यहाँ तक कि ग्रहों का राशिधारियों पर चढ़ना -उतरना भी समयबद्ध है। शनि महाराज भी चढ़ते हैं तो ढैया या साढ़े साती के बाद लोगों को आशीर्वाद देते हुए आगे बढ़ जाते हैं परन्तु हमारे भारत पर दो महाग्रह- भ्रष्टाचार एवं कालाधन न जाने कब से पूरी तरह वक्री हो चढ़ गये हैं और छोड़ने का नाम नहीं ले रहे हैं। हाल ही में अन्नाई उम्मीदें करवट लेने लगी थीं कि ये ग्रह भारत को अब जल्दी छोड़ देंगे। साधारण जनमानस भी सुखद अगड़ाई लेने लगा कारण कि उन्हें अपना एवं देश का भविष्य बसंत की ओर बढ़ता दिखने लगा । अन्ना जी, बाबा रामदेव एवं श्री श्री रविशंकर जैसे महानुभावों ने आगे बढ़कर महाग्रहों की विदाई एवं वसंत की आगवानी करने का उद्घोष भी कर दिया परन्तु हुआ कुछ नहीं । इन दोनों ग्रहों ने अपना तंत्र इतना अधिक वक्री कर दिया कि हम जैसे लोग अवाक् हैं। अन्ना,बाबा और श्री श्री भी हतप्रभ हैं कि आखिर भारतीयों ने ऐसी किस विदाई की बात कह दी या किस बसंत का आह्वान कर दिया कि देश चलाने वालों की अधिकांश जमात ही आग बबूला हो गयी।अब तो ये नेता और नौकरशाह कालाधन संचय हेतु और निर्भय हो नित नए -नए भ्रष्टाचार करने लगे हैं। हे भारत के भाग्य विधाता! कुछ करिए ताकि इन् दोनों महाग्रहों की विदाई हो सके और हम भारतीय नव बसंत का न भूतो न भविष्यति सा स्वागत कर सकें।
मेरा भी मन है कि कहीं दूर गाँव के सीवान जाकर ऋतुराज का दर्शन करूँ, जहाँ मीलों मील तक सरसों के पीले फूल इतरा रहे हों, अमरावती के पराग वातावरण को मदमस्त कर रहे हों व बाग़- बगीचों में डालियों पर लाल,हरी कोपलें सरसता का सन्देश दे रही हों साथ ही कहीं दूर-पास से कोयल की सुमधुर कू-कू की आवाज भी कानों तक पहुच रही हो। अन्यथा पन्त,प्रसाद, निराला, सुभद्रा कुमारी चौहान,पद्माकर या सेनापति की सरसाई कवितायेँ पढ़ कर ही बसंतोंमाद के कल्पना लोक का विचरण कर आऊंगा।वैसे भी इन महाकवियों में ही वह अद्भुत वाणी विदग्धता थी जो धरती पर नैसर्गिक ऋतुराज का अवतरण कराती रही है अन्यथा बसंत केलिए पहचान संकट हो जाय।
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अंततः
—— शिष्टाचारी रहो। अच्छा है- जीवन सदाबहार बासंती हो जाएगा।
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