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शहीद की अवधारणा- jagaran junction forum

Jeevan nama
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बहुत हो -हल्ला और मीडियाबाजी के बावजूद एक भारतीय नागरिक स्व श्री सरबजीत को न तो सरकार पाकिस्तान की जेल से आजाद करा पाई न जेल में ही घायल किये जाने पर उसे इलाज केलिए जीवित अपने देश ला सकी । अंत में उसका पार्थिव शरीर देश लौटा और देश की माटी में विलीन हुआ । जो कुछ हुआ ,उससे हर भारतीय को बड़ी ही पीड़ा हुई ।जीते जी जो कुछ दिनों केलिए ही सही अपने गाँव व देश न लाया जा सका ;मरने पर अतिसक्रिय केंद्र और राज्य सरकारें श्रद्धासुमन से शुरुआत कर उनके परिवार पर लक्ष्मी की बरसात करते हुए उनके बच्चों को नौकरी देने में दत्तचित्त हो गयीं । यह सब तो ठीक था । असामान्य एवं चौकाने वाली बात तो तब हुई जब सरबजीत को बहादुर लाल और शहीद तक घोषित कर दिया गया ।
शहीद की बात आई तो शहीदी क्षेत्र के सपूतों की याद आई कि क्या स्व सरबजीत शहीद भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद की श्रेणी का आत्मबलिदानी था । कदाचित नहीं । लगता है हमारे देश मेंशहीदनामकसम्मानपरिभाषित है ही नहीं ।सच यह है कि शहीद एक अवधारणा है जिसका दायरा पूर्णरूपेण अस्पष्ट है या बनाया जा रहा है । शब्दकोष की मानें तो देश और समाज केलिए आत्मबलिदान करने वालों को शहीद कहते हैं ।फिर इसी परिपेक्ष्य में या तो इशारे को समझा जाय या मान लिया जाय कि सरकार केपास शहीद घोषित करने केलिए न मानक योग्यता शर्तें हैं न इस सम्मान केलिए कार्य क्षेत्र परिभाषित हैं । तभी तो जिसे मन में आया शहीद कह दिया।ऐसे सम्मानसूचक विशेषण और भी हैं जो मात्र अवधारणा रूप में रह गए हैं जैसे महात्मा ,बापू ,नेताजी ,महामना,लौहपुरुष ,लोकनायक इत्यादि जिन्हें आजकल चाटुकारिता केलिए प्रयोग में लाया जाता है। देश में खिलाड़ियों ,साहित्यकारों ,संगीतकारों ,फिल्मकारों इत्यादि केलिए उनके क्षेत्र से जुड़े परिभाषित सम्मान हैं जो मानकों के आधार पर उनके विशेष योगदान केलिए उन्हें दिए जाते हैं परन्तु जिन नायकों के त्याग और बलिदान से हम हैं ,हमारा राष्ट्र है और हमारे राष्ट्र का गौरव है ;उनके साथ लगे सम्मानसूचक शब्द मात्र अवधारणा हैं या यूँ कहें कि अब्यक्त ,अपरिभाषित एवम अनारक्षित हैं ।
किसी देश की कोई भी सरकार एक ब्यक्त ब्यवस्था होती है फिर वह अवधारणा पर कैसे काम कर सकती है । सरकार का प्रथम कर्तब्य है कि वह विशेष सम्मानसूचक शब्दों को जाने ,उनका दुरुपयोग रोके और आवश्यकता पड़ने पर उनकी पेटेंटिंग कराए । सरकार से अब यह तत्काल अपेक्षा है कि वह शहीद शब्द की भी लिखित ब्याख्या दे और स्पष्ट करे कि शहीद किसको कहा जायगा । फिर उसके प्रति क्या सम्मान एवं जिम्मेदारियाँ होंगी । हमारे अतीत के राष्ट्र नायकों एवं शहीदों की श्रेणी में किसी की घोषणा से पूर्व सरकार को चाहिए कि सारे मानकों पर हर केस का गहन परीक्षण करे अन्यथा सच्चे सपूतों के साथ हमलोग कृतघ्नता के दोषी होंगे ।
मानकों पर खरा उतरने की बात ही क्या हो जब हम भारतीयों का एक बड़ा वर्ग अभी भी नहीं जान पाया है कि यह सरबजीत वस्तुतः कौन था ,वह क्या करता था और कैसे पाकिस्तान पहुँच गया !या तो वह स्वयं सीमा लाँघ कर पाकिस्तान पहुँचा होगा या सीमा लंघा कर उसे पाकिस्तान पहुँचाया या खींच लिया गया होगा । इन तीनों स्थितियों में किसी न किसी का कोई मन्तब्य रहा होगा ।पाकिस्तान कहता रहा है कि वह दहशतगर्द था जो पाकिस्तान में दहशत फ़ैलाने आया था । हमलोग सुनते हैं कि वह भूलवश सीमा लाँघ गया था । सब मिलाकर ऐसा लगता है कि सीमा लाँघने और लंघाने का काम बार्डर पर होता रहता है । फिर तो पाकिस्तान की जेलों में ऐसे बहुत सारे सरबजीत होंगे । मन नहीं मानता ,कहीं आंधी -तूफान और चक्रवाती हवाएँ इन सीमावर्ती वासिन्दों को सीमापार फेंक तो नहीं देती हैं ;फिर दोनों ही सरकारें सारे काम -काज छोड़ ऐसे बदनसीबों के पीछे पिल पड़ती हैं ताकि अन्य बातों से जनता का ध्यान हटाया जा सके । अब सरबजीत मामले में सबकुछ ख़त्म होने के बाद सरकार को उनकी एक रीयल स्टोरी जारी कर देनी चाहिए ताकि शंका निर्मूल होसके और शहीद की अवधारणा प्रश्न चिन्हित न हो ।
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अंततः
अर्जुन ने अपना विचार व्यक्त किया
चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बल्वददृढं ।
तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करं ।६ /३ ४
श्री भगवान ने समाधान बताया —
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं ।
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते । ६ /३ ५
(मनकी चंचलता निरंतर अभ्यास एवं वैराग्य से ही मिटाई जा सकती है)
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