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मानसूनी मेनिफेस्टो

Jeevan nama
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मानसूनी हवाएँ भारत में पानी बरसाती हैं और चुनाव में विजयी राजनीतिक दल का मेनिफेस्टो या वादापत्र ,जनता के पैसे से जनता पर, विकास की घटिया सौगात बरसाता है। लगता है भारतीय लोकतंत्र में विभिन्न दलों द्वारा चुनाव से पहले जारी मेनिफेस्टो ,वादा या घोषणा पत्र बहुत कुछ पावस ऋतु के मानसून ,बादल एवं बरसात तुल्य चरित्र के होते हैं।वर्षा पूर्व मानसून कभी अरब सागर  तो कभी बंगाल की खाड़ी में सक्रिय होते हैं ,फिर घटते -बढ़ते हवा के दबाव व दिशा के अनुसार कहीं फटने वाले बादल बन कर सैलाब लाते हैं ,कहीं जीवनदायी बरसात बन जाते हैं तो कहीं बिल्कुल कमजोर एवं निष्क्रिय होते हुए किसी क्षेत्र को सूखे से तवाह कर देते हैं । चुनाव से पहले सभी दलों द्वारा घोषित वादापत्र लगभग ऐसे ही होते हैं । जिस भी दल को जंग -ए -चुनाव की उठा -पटक में सफलता मिल जाती है, उसे वादारूपी बरसात करने की स्वच्छंदता मिल जाती है । वह विरोधियों को फटने वाला बादल बन डराता है,समर्थन देने वाले मतदाताओं पर कृपा की बरसात करता है और वोट न देने वाले क्षेत्र की जनता को सरकारी सुबिधाओं से वन्चित कर देता है । आम लोग इन दलों के नेताओं के ऐसे ब्यवहार के आदी हो चुके हैं परन्तु आश्चर्य तब होता है जब ये नेता जनता को समस्या एवं समाधान में उलझा समझ कर अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए ऐसे कारनामें कर जाते हैं कि इतिहास भी उन्हें माफ़ नहीं करे।
इस संदर्भ में यदि भारत में वादापत्रों के बरसाती ब्यवहार की बात करें तो सभी प्रदेश कड़ी प्रतिद्वंदिता में हैं । उत्तर प्रदेश को ही लेलीजिये -यहाँ अम्बेडकर ,कांशीराम ,लोहिया इत्यादि ख्यातिप्राप्त नामधारी सौगातों की बरसात मनचाहे भौगोलिक क्षेत्रों एवं मतदाताओं पर उनकी या इनकी बारी से होती रहती है,वैसे ही जैसे मध्यान भोजन की बरसात, बच्चों को उनके गरीबी एवं लाचारी का अहसास कराते हुए, स्कूलों द्वारा विभिन्न रूपों में देश के स्कूली बच्चों पर हो रही है ।और देखिये -कहीं टीवी बरस रही है तो कहीं लैपटाप । कहीं साईकिल या रिक्शा तो कहीं एक रूपया किलो अनाज । कहीं शादी कराने की ब्यवस्था तो कहीं शादी तुड़वाने में पूरा खर्च । आगे मोबाइल भी बरसने की बात हो रही है जो ब्यापक मानसून की तरह एक पार्टी पूरे देश में बरसा सकती है । अब तो ए वादापत्र रोजगार न देकर बेरोजगारी भत्ता देना अपने हित में बेहतर समझ रहे हैं ।
इन मेनिफेस्टो को ध्यान से पढ़ने पर हमारे देश के नेताओं में छिपी महत्वाकान्छायें भी साफ झलकती हैं । इनकी महत्वाकांछा ने देश का बंटवारा किया ,फिर प्रदेशों को बांटना शुरू किया । यह दौर कहाँ रुकेगा – किसी को पता नहीं । कभी कोई दल एक प्रदेश को बांटने का वादा करता है तो दूसरा किसी और का । अवसर मिलते ही बिना सीधे जनमत के नेतालोग आन्दोलन एवं दंगों के बलपर विकास की दुहाई देकर प्रदेशों को बाँट रहे हैं । संविधान भी मूल भावना से नहीं बुद्धिविलक्षणता से विश्लेषित होने लगा है । फिर क्या ;राजा (जनता )को पता नहीं मुसहर वन बाँट रहे हैं । ताजा उदहारण है आंध्र प्रदेश जो ऐसे ही एक वादा बरसात का झंझावत झेल रहा है । यह ठीक नहीं है । क्या बँटवारा को आगे बढ़ानेवाले बता सकते हैं कि इस प्रदेश के कितने प्रतिशत लोग ऐसा चाहते हैं ?
लोकतन्त्र में यदि जनता द्वारा चुनी हुई सरकारें जनता की सेवा के निमित्त बनती हैं तो सेवा केलिए चुनाव में उतरने वाले दलों एवं उम्मीदवारों के वादापत्र सर्वजन हिताय के धरातल पर होने चाहिये और चुनाव के समय इस पर सर्वाधिक खुली बहस होनी चाहिए । इन्हें वर्ग ,वर्ण या मतदाता विशेष से भी परे होना चाहिए ।गाँधी के देश में यह सभी दलों को पता है कि जनता को क्या चाहिए । इसलिए वादापत्र बनाने वालों को उस समय की जनता बन कर इन्हें तैयार करना चाहिये ।परन्तु वस्तुस्थिति बेमेल है और नेतानीत दल जनता को वह देने का वादा करते हैं जिससे लगे कि वे राजा और जनता उनकी प्रजा है ;वे दाता हैं और जनता भिखारी है;; वे सर्व सुख भोग के अधिकारी हैं और कष्ट झेलती जनता बेवश कराहने की पात्र।ये दानवीर आधुनिक कर्ण कम्बल क्रय करने की क्षमता नहीं देंगे बल्कि जाड़े में सीधे घटिया कम्बल ही बाँट देंगे ।अतः आज के भारत का लोकतंत्र ब्यवहार में राजशाही का भ्रष्टतम रूप है जिसमें नेता केलिए सब जायज है और जनता क्या चाहती है के कोई मायने नहीं हैं।
स्वतंत्रता मिलने के छाछठ वर्षों बाद भी भारत के नागरिक उपलब्ध करायी गयी सुविधाओं से बेहद आहत है क्योंकि ये सुविधाएँ यथा अच्छी सड़कें ,चुस्त नागरिक सुरक्षा ,भरोसे योग्य एवं सुलभ स्वास्थ्य सुविधाएँ ,सस्ती शिक्षा ,भरपूर बिजली ,स्वच्छ पेय जल ,द्रुत न्याय ब्यवस्था तथा भ्रष्टाचार मुक्त शासन आज भी ये सरकारें सुनिश्चित नहीं कर पाई हैं । जनता केलिए जो सुविधाएँ बनाई या दी जा रही हैं वे ज्यादातर असुविधाजनक एवं कोसने को विवश करने वाली हैं । यदि शुद्ध जन सेवा की भावना होती तो ये राजनैतिक दल अपने वादापत्र में घोषणा करते कि यदि जनता ने उन्हें चुना तो पाँच वर्षों में बिजली का इतना उत्पादन बढ़ा देंगे कि जनता एवं उद्योगों को चौबीस घंटे भरपूर बिजली सुलभ रहे गी या कि जो भी सड़कें बनायें गे वे अंतर्राष्ट्रीय स्तर की होंगी या कि नागरिकों को वे राम राज्य जैसी सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे इत्यादि ।इनसे भी ऊपर उन्हें अपने पर विश्वास बहाली एवं राजस्व खर्च पारदर्शी ढंग से सर्व समाज हित में करने का वादा करना चाहिए । साथ ही वादा को पूरा करने का भी सच्चा वादा होना चाहिए।
पिछले दो -तीन वर्षों में अन्ना हजारे साहब एवं बाबा रामदेव के जन आंदोलनों से जहाँ एक ओर जनता जागृत हुई है वहीँ दूसरी ओर उच्चतम न्यायलय के कुछ प्रशंसनीय फैसलों से आशा की नई किरणें फूटी हैं । आगामी लोकसभा चुनाव में इन आंदोलनों एवं निर्णयों का प्रभाव स्पष्ट रूप में दिख सकता है । इसका श्रीगणेश राष्ट्रीय दलों जैसे भाजपा ‘कांग्रेस ,वामदल के वादापत्रों से अपेक्षित है । ब्रह्म सूत्र मान कर चलें कि देश में अब भ्रष्टाचार ,विदेश में काला धन संचय तथा दागी प्रतिनिधित्व स्वीकार्य नहीं होगा ।
यदि इन संकेतकों को ध्यान में रख कर सर्व समाज केलिए ढाँचागत विकास आधारित वादापत्र बनें गे और जनता से स्वीकृत अर्थात विजयी होने पर दृढ़ता से क्रियान्वित होंगे तो देशवाशी स्वयं सहकारी प्रतिद्वंदिता द्वारा देश को दिन दूना रात चौगुना गति से आगे ले जांय गे । तभी भारत का विश्व शक्ति बनने का सपना साकार हो सके गा । भारतीयों को बेहतर मंच या लाँचिंग पैड चाहिए ,अवसर वे स्वयं तलाशने को उत्सुक हैं ।खासतौर पर भारत का युवावर्ग जैसा मानसून चाहता है वैसी स्थितियाँ लाई जांय अन्यथा लायी जांयगी ।
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अंततः
मां ,पिता और अभिभावकों को बच्चों में इतना भी संस्कार नहीं भर भर देना चाहिए कि समाज से मिलने वाले नए संस्कारों को ग्रहण न कर सकें;वरन सभ्यता के ठहर जाने का खतरा है ।
12 अगस्त 2013
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