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समाजवादी टोपी एवं लाल बत्ती

Jeevan nama
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——————–इस वर्ष होने जा रहे आम लोकसभा चुनाव में अपनी -अपनी विजय केलिए भाजपा या काँग्रेस ही नहीं अपितु देश के सभी छोटे- बड़े राजनीतिक दल अपने आधुनिक रणकौशल केसाथ जनता के बीच उतर चुके हैं । सायकिल सवार समाजवादी भी लाल टोपी लगाये झुण्ड के झुण्ड उत्तर प्रदेश की सडकों पर निकल पड़े हैं । जनता को मोहक सपने दिखा कर उन्हें अपना सपना पूरा करना है । सपना एक ही है कि यदि किसी भाँति जनता एक बार फिर बहक जाती और लोकसभा चुनाव में उन्हें ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विजयी बना देती तो जोड़ -तोड़ की कोई जुगत भिड़ा कर उनके नेता जी अर्थात मुलायम सिंह यादव भी चौथेपन में देश के प्रधान मंत्री वाली कुर्सी का नैसर्गिक आनन्द उठा लेते ।कितने दिन केलिए बैठ लेते -यह बात समाजवादिओं के सपना में गौण है । बैठने के बाद वे मनमोहन सिंह ,देवगौड़ा, स्व नरसिंह राव या स्व चौधरी साहब सिद्ध होंगे -यह भी इन लोगों का नहीं बल्कि इतिहासकारों का विषय होगा ।
——————–अभी नेता जी ने कहा है कि चुनाव से पहले कोई तीसरा मोर्चा नहीं होगा । बात भी ठीक है चुनाव परिणाम आने तक सारे विकल्प खुले रखना उनके हित में है । यदि अच्छी सँख्या में उत्तर प्रदेश से सीटें मिल गईं और सम्भावना का सिद्दांत काम कर गया तो मन माँगी मुराद पूरी नहीं तो सोनिया जी की शरण में तो वे पहले से हैं ही । सारे आकलन गलत होने की दशा में नेता जी तो कहते ही हैं कि अडवाणी जी देश के बड़े नेता हैं । चूँकि प्रदेश के बाहर समाजवादी दल अस्तित्व विहीन है अतः इन्हीं तीन विकल्पों में उन्हें अपनी जगह तलाशनी है । समाजवादी भूलें -न भूलें परन्तु उनके मुखिया कैसे भूल सकते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के समय वे ममता बहन का कितना साथ निभाए या नाभकीय मुद्दे पर वे बामपंथियों के साथ कितना चले ।
——————–उत्तर प्रदेश में राजशाही ज़माने से दबंगई की एक सामन्ती धारा बहती है ।समाजवादियों में भी दबंगई की अपनी संस्कृति है। किसी को उठक -बैठक करा देना ,किसी जी हुजूरी न करने वाले अधिकारी को अपमानित कर देना ,जाति विशेष के अधिकारियों का योग्यता न होते हुए भी रुतबा बढ़ा देना ,कानून ब्यवस्था की धज्जियाँ उड़ते देखना या सैफई जैसे नाच -गाने का आयोजन सदा इनके शासन और शान में होता आया है । इनकी दबंगई कार्यालयों एवं सडकों पर दिखती है और एक वर्ग के नव युवकों को खूब भाती है।ऊपर से इस दल के बड़े नेताओँ का अपने छोटे कार्यकर्ताओं एवं परंपरागत मतदाताओं से गहरा जुड़ाव है । सोने में सुहागा कि उत्तर प्रदेश का जातीय समीकरण निर्विवादरूप से समाजवादियों की सबसे बड़ी मतपूँजी है ।
——————–दबंगई बढ़ाने एवं कार्यकर्ताओं में नया रक्त -संचार भरने केलिए उत्तर प्रदेश सरकार चाहती है कि हर जिले में उनके दस -पाँच नेता लाल बत्ती से सुशोभित हों और जनता में इनके साथ रहने के ग्लैमर का चकाचौंधी संदेश जाय । किसी को मंत्री ,किसी को राज्यमंत्री तो किसी को उनका दर्जा देकर लालबत्ती एवं सुरक्षा कर्मियों का कवच देना भी तो सरकार का दायित्व है ताकि समाजवादिओं में समाजवाद चहुँ ओर दिखे । यह तो माननीय उच्च न्यायालय है कि लाल बत्तियों की बाढ़ को रोक रही है । फिर भी समाजवादी सरकार उच्चतम न्यायालय जाने का मन बना चुकी है और यह बात माननीय न्यायालय के संज्ञान में लाये गी कि लाल बत्ती की सँख्या बढ़ाने से भला जनता का क्या लेना -देना है । अलबत्ता इससे तो हनक बढे गी कि पुलिस वाले खोई हुई समाजवादी भैसें हर हाल में ढूंढ़ निकालें गे ।
————————- लाल टोपी और लाल बत्ती की युगलबंदी जनता को भली लग रही है या नहीं -यह तो चुनाव परिणाम ही बताएँ गे ।परन्तु समाजवादियों को इतना तो समझ लेना चाहिए कि अन्ना आन्दोलन से देश की जन चेतना जागृत हुई है और वह अब नेताओं को मात्र सेवक के रूप में देखना चाहती है । अभी समाजवादी सरकार जनता की कितनी और क्या -क्या सेवा कर रही है ;इसका सड़क और चौराहों पर आकलन हो रहा है । अब निर्णय ,धर्मनिरपेक्षता के छलावे पर नहीं, सामने दिखते विकास पर होगा । यह आगामी चुनाव का बड़ा ही दिलचस्प पहलू होगा कि उत्तर प्रदेश किस करवट बैठता है।बेहतर होगा कि समाजवादी खास बनने का चक्कर छोड़ आम बनने का प्रयास करें और अपनी सारी ऊर्जा एवं संसाधन उत्तर प्रदेश के विकास और जनता की खुशहाली केलिए लगा दें ।
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अंततः
——————–विकास वह चकाचौंध है जो दिखती है । इसे रैली,सड़क यात्रा या विज्ञापन द्वारा दिखाने की अवश्यकता नहीं पड़ती है ।
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