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सत्ता परिवर्तन ( बदलाव )

Jeevan nama
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**********अधिकांश भारतीयों को अच्छा लग रहा है कि हमारा लोकतंत्र सही रास्ते पर चल पड़ा है । रास्ते की अवरोधक राजनीतिक वंश -वल्लरियाँ सूखने लगी हैं । देश में अन्ना आन्दोलन से उपजी आम आदमी पार्टी के अभ्युदय एवँ मुख्य राष्ट्रीय विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर श्री राजनाथ सिंह के मनोनयन के बाद बदलाव ने अपना रास्ता बहुत ही द्रुत गति से बनाना शुरू किया और कुछ ही महीनों में सोलहवीं लोकसभा के चुनाव समापन तक श्री नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद पर आसीन कर एक बेहतर एवँ कल्याणकारी युग में प्रवेश कर गया ।आरम्भिक चरण में जब श्री सिंह ने भाजपा की  कमान सँभाला ,आम जन की अभिरुचि उनमें कम और इस बात में ज्यादा थी कि श्री मोदी भाजपा की ओर से प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए जाँय । इस दबाव के पीछे कारण यही था कि जनता काँग्रेस नीत सरकार को समूल उखाड़ फेंकने का मूड बना रही थी और पूरे देश में उसे नरेंद्र मोदी ही ऐसे नेता रूप में दिख रहे थे जो राष्ट्रीय पटल पर नायक की भूमिका निभा सकते थे । मात्र नमो में ही वह दम -ख़म था जो कुशासन ,महँगाई और भ्रष्टाचार की पर्याय बन चुकी काँग्रेस को टक्कर एवँ उसे तहस -नहस करने वाला मात दे सकता था ।

**********सब कुछ अनुकूल होता गया । नमो भाजपा की ओर से प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए । मिल बाँट कर सत्ता सुख भोगने वाले सारे विरोधी दल मोदी -निंदा में जुट गए ।  पिछले दस -बारह वर्षों से प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक समाचार माध्यमों ने जिस मोदी को विवादों में घेरे रखा वही मोदी उन पर नशा सा छाने लगे और समाचारों के शीर्ष विषय बन गए ।जहाँ कहीं मोदी की रैली होती लाखों श्रोताओं का समुद्र उमड़ पड़ता । अनदेखी और अनजान बनी काँग्रेस कहती रही कि उन्हें तो मोदी की कहीं लहर दिखती नहीं । आप कहती कि भ्रष्टाचार से हम लड़ रहे हैं और जनता हमें ही सत्ता सौंपे गी । प्रदेश स्तर की पार्टियाँ कहतीं  कि उनका तीसरा मोर्चा ही सरकार बनाए गा । बिरोधी दल मोदी नहीं बाकी सब कुछ पर आमादा होते गए । परन्तु भाजपा एवँ मोदी अपने सुशासन एवँ विकास के मुद्दे पर अडिग रहे । चुनाव मोदी वनाम मोदी- नहीं होता गया ।मोदी के पक्ष में समूचे देश की नई पीढ़ी ने सोशल मीडिया सँभाला ,बुद्धजीवियों ने बढ़ते जन समर्थन रूपी ऊर्जा की व्यूह रचना की और कार्यकर्ताओं ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने का सँकल्प लिया ।जन -जन ने ठान लिया कि अबकी बार मोदी सरकार ।परिणाम घोषित हुए । मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत एवँ भाजपा नीत राजग को प्रचंड बहुमत मिला । मोदी -नहीं खेमें वाले देश विदेश के लोग भौंचक एवँ अवाक् रह गए ।जनाकांछा पूरी हुई और अपार उल्लास बीच मोदी जी भारत के प्रधान मंत्री पद पर सुशोभित हुए ।लगता है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।

**********यह चुनावी दौर जब कल भारतीय इतिहास का हिस्सा होगा ,तीन -चार प्रमुख घटनाएँ निश्चित रूप से उसमें उल्लिखित होंगी । आम आदमी पार्टी का पुच्छल तारे की भाँति भारतीय राजनीति के पटल पर उदित होना इनमें पहली घटना थी । निःसंदेह अन्ना आन्दोलन से कुछ अच्छे लोग जुड़े थे जबकि कुछ अन्य चालाक और अच्छे लोग थे । वे धैर्य और दृष्टि केसाथ देश की राजनीति में कुछ अभिनव प्रयोग कर सकते थे परन्तु सत्ता एवँ ख्याति के वशीभूत हो स्वयं महत्वकांछी बन गए और वैसे ही लोगों से चौतरफा घिर गए । काँग्रेस के विरोध पर खड़ी यह पार्टी कांग्रेस से सहयोग लेकर दिल्ली में सत्ता का खेल खेली ; फिर और  बड़ी महत्वकाँछा पूर्ति केलिए लोकसभा चुनाव में कूद पड़ी। जनता सतर्क हो गई कि  आप नमो के रास्ते का रोड़ा बन रही है और इसका आचरण भी अन्य विरोधी दलों जैसा ही है । फिर क्या था ।  पूरे देश में इस पार्टी की भी काँग्रेस व अन्य दलों की भाँति बुरी दुर्गति हुई और यह पुच्छल तारा चुनाव परिणाम के साथ तिरोहित हो गया ।

**********इस चुनाव में एक और उल्लेखनीय बदलाव यह आया कि भारत में धर्म निरपेक्षता /सेक्यूलरिस्म अपने मूल स्थान पर लौट आया । हमारे संविधान में यही एक ऐसा शब्द है जिसका सर्वाधिक दुरुपयोग हुआ ।  अधिकांश दल अनेक धर्मों वाले इस देश में सेक्युलरिस्म के नाम पर भ्रम एवं भय फैलाकर राष्ट्रवादी दलों को अछूत बनाये रक्खे और अपने पक्ष में बार -बार सत्ता पाते रहे। नई पीढ़ी ने इस छलावा को बड़ी बारीकी से पकड़ा और  इसे चुनावी मुद्दा से अलग कर जनता की ज्वलंत समस्याओं को आगे बढ़ाया। यह स्थापित हो गया कि विकास और सुशासन की बात करने वाले राष्ट्रवादी  केवल सेक्युलर -सेक्युलर रटने वालों से ज्यादा सेक्युलर हैं । यह अर्थ मिटा दिया गया कि किसी वर्ग विशेष की बात करना सेक्युलरिस्म है तो सभी वर्गों की बात करना नानसेक्युलरिस्म ।जनमत ने तय कर दिया कि सबकें लिए सुशासन एवं सबका विकास ही भारत केलिए आदर्श धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या है। अतः आशा की जा सकती है कि आने वाले चुनावों में यह शब्द अपने मौलिक तात्पर्य को नहीं खोयेगा ।

**********परिवर्तन के दौर में तीसरा सबसे अहं ,सकारात्मक एवँ सराहनीय बदलाव लोकतंत्र के नाम पर वर्षों से स्थापित वंशवादी शासन व्यवस्था का उखड़ना  था ।काँग्रेस के नाम पर नेहरू -गाँधी परिवार ,डीएमके के नाम पर करूणानिधि परिवार ,सपा के नाम पर मुलायम सिंह यादव परिवार ,राजद के नाम पर लालू परिवार इत्यादि -इत्यादि ने अपना स्पष्ट पराभव देखा । जनता नहीं चाहती कि कोई सरकार किसी परिवार की कठपुतली बनकर चले ।जनता ने स्पष्ट कर दिया कि वंशतंत्र में लोकतंत्र नहीं हो सकता और जहाँ लोकतंत्र  है वहाँ वंशवाद पनप नहीं सकता । अतः राजनीतिक दलों को यथाशीघ्र वंशवादी बेड़ियाँ तोड़ कर अपनी प्रासंगिकता बहाल करना होगा । काँग्रेस मुक्त भारत का नारा अपने में बहुत सारे निहितार्थ समेटे हुए है ।इन मील के पत्थरों के अतिरिक्त राजनेताओं के भाषणों एवं उद्गारों में भाषा की अशिष्टता इस चुनाव में अपने चरम पर रही । चुनाव आयोग को कक्षा मॉनिटर की तरह नेताओं को डाँटते फटकारते और संतुष्ट होते पाया  गया ।आयोग करता भी क्या। हमारे देश में फिल्म सेंसर बोर्ड भी तो “चोली के पीछे क्या है “जैसे फ़िल्मी गानों को समझाने पर शिष्टाचार के हिसाब से ठीक -ठाक मान लेता है ।

**********अब बदलाव की बयार को जनता तक पहुँचाने का समय है । अपेक्षा प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी से है । यह गौण है कि उनके कैबिनेट मैं कौन लोग हैं या उनके सहयोगी कौन हैं।पहले राहत फिर सुशासन और विकास को भारत भूमि पर अवतरित होते देश का हर नागरिक देखना चाहता है । अच्छे दिन रूपी स्वप्न सुन्दरी की प्रतीक्षा है और भगीरथ प्रयास कसौटी पर ।

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अंततः

************जब सफलता मिलनी होती है ,परिस्थितियाँ स्वयँ अनुकूल होती जाती हैं । यथा जब पवनपुत्र हनुमान लंका दहन को उद्यत हुए तो उन्चासों पवन चलने लगे थे ।

++++++++++हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास ।

++++++++++अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास । गोस्वामी तुलसी दास

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