Menu
blogid : 10117 postid : 1125410

इति श्री असहिष्णुता कथा

Jeevan nama
Jeevan nama
  • 74 Posts
  • 98 Comments

***************वर्ष दो हजार पंद्रह अवसान की ओर अग्रसर है। साथ ही भारत में असहिष्णुता पर चर्चा- परिचर्चा भी समाप्त हो रही है। टीवी पटल से इस विषय का गायब होना और दूसरे विषयों का अवतरित होना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। इसके कई उदाहरणों में प्रथम भारत द्वारा पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना या दूसरा सोनिया जी व राहुल का दल -बल के साथ न्यायलय में उपस्थित होना है। किसी न किसी रूप में यह असहिष्णुता सदियों से समाज के ताने -बाने में विद्यमान रही है। इतिहास साक्षी है कि पूर्व मध्य काल से आज तक,विदेशी आक्रान्ताओं और देशी दमनकारी शासकों के लिए सहिष्णु भारत एवँ सहिष्णु भारतीय प्रशंसनीय रहे हैं क्योंकि हमारी सहिष्णुता पर ही उनकी असहिष्णुता फूलती – फलती रही है। बारहवीं सदी वाले उस काल -खण्ड को लोग आज भी याद करते हैं जिसमें सहिष्णु पृथ्वीराज चौहान बार – बार विजयी होने पर असहिष्णु एवँ आक्रान्ता मुहम्मद गोरी को छोड़ते गए और सन ग्यारह सौ बानवे में आक्रमण कर जब उसने चौहान को पराजित किया तो उन्हें बन्दी बना कर अफगानिस्तान ले गया और यातनापूर्ण मृत्युदण्ड दिया।भारतीय इतिहास के हर नए पृष्ठ पर कुछ ऐसे ही घटनाक्रम झाँकते हैं। देशी राज्यों में आपसी असहयोग एवँ स्वभावगत सहिष्णुता के कारण लगातार बाहरी आक्रमण होते रहे और हमारे देश का इतिहास, भूगोल एवँ समाज बदलता रहा। वर्तमान भारत में उसी समाज की नई पीढ़ियाँ बसती हैं जिसमें ढेर सारे अयोग्य एवँ असहिष्णु लोग भी छद्म धर्मनिरपेक्षता के सहारे समाज में स्थान बना लिए हैं। आज की भारतीय जलवायु में जब शुद्ध धर्मनिरपेक्षता,प्रखर राष्ट्रवाद एवँ सबके विकास की बात होने लगी है तो ऐसे लोगों में घबराहट हुई है और अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए वे सरकार और उनके समर्थन वाली जनता को असहिष्णु बनाने लगे हैं।यदि इस दबाव को निष्प्रभावी नहीं किया गया तो सरकार अपने मुद्दों से भटके गी और कुचक्र चलनेवाले अपने मंतव्य में सफल हो जाँयगे।
***************कोई घटनाक्रम नहीं अपितु दो घटनाएँ थीं जिनकी पृष्ठभूमि में वर्तमान असहिष्णुता का वितान रचा गया। ये थीं -कन्नड़ भाषा के साहित्यकार श्री कुल्बर्गी की हत्या एवँ दादरी में बीफ खाने की अफवाह पर अखलाक नामक एक व्यक्ति की पिटाई से मौत।दोनों ही घटनाएँ कानून व्यवस्था से जुड़ीं हैं और राज्य सरकारों का प्रथम दायित्व है कि हर नागरिक के जान -माल उसके संवैधानिक अधिकारों को चुस्त दुरुस्त सुरक्षा प्रदान करें।यदि ऐसा करने में राज्य सरकारें विफल होती हैं तो उन्हें सत्ता में रहने का कोई औचित्य नहीं है। अतः अतीत के पुरस्कार विजेताओं में यदि कुछ लोगों को विरोध जताने की बात सूझी तो उन्हें कर्नाटक की काँग्रेस एवँ उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकारों के विरुद्ध खड़ा होना चाहिए था न कि केंद्र की गठबन्धन सरकार के बिरुद्ध। पूरे देश ने देखा कि दोषी कौन और कठघरे में खड़ा किसको किया गया।उद्देश्य एक ही था कि मारो कहीं लगे वहीँ।
***************यह सर्व विदित है कि किसी व्यक्ति को पुरस्कृत होने के लिए उत्कृष्टता के साथ एक अहं मापदण्ड पुरस्कार देने वाली सरकार या संस्था का ,विचारधारा आधारित, पसन्द भी होता है। पुरस्कृत होने पर प्राप्त कर्ता को अल्पकालिक एवँ दीर्घकालिक दो प्रकार के लाभ होते हैं यथा एकाएक व्यक्ति को ख्याति मिलती है ,अपने क्षेत्र में उसकी पूछ बढ़ती है और भविष्य में सरकारी एवँ गैर सरकारी सुविधाओँ के लिए उसकी पात्रता बढ़ती है।यही कारण है कि गैर राष्ट्रवादी सरकारों के दौर में वामपंथी ,काँग्रेसी ,क्षद्म धर्मनिरपेक्षी और गैर हिंदूवादी विचारों वाले साहित्यकार ,समाजसेवी वैज्ञानिक ,सिनेधर्मी ,संगीतज्ञ इत्यादि खूब पुरस्कृत होते रहे और दीर्घकालिक लाभ उठाते रहे।इन आदरणीयों में कुछ लोग ऐसे भी हैं जो राष्ट्रवाद , वहुसंख्यकवाद एवँ मूल धर्मनिरपेक्षता को अपने एवँ देश के लिए अस्पृश्य मानते हैं। फलतः बेमेल विचार की व्यवस्था में ऐसे लोगों के सर्वकालिक लाभ भी बाधित हुए । फिर क्या कुल्बर्गी या दादरी के बहाने , घटती आदरणीयता वाले ये लोग सरकार के ऊपर असहिष्णु होने का आरोप लगा दिए। साहित्य अकादमी के सदस्य ,पैंतीस पुरस्कार वापस करने वाले साहित्यकार ,समाजसेवी,रंगकर्मी ,नेता. पुरस्कारों से जुडी संस्थायें इत्यादि मैदान में कूद पड़े। मीडिया के मैदान में भयंकर वाकयुद्ध हुआ कि सरकार असहिष्णु हो गई या नहीं। अंततः मिथ्या बादल छँटने लगे और देशवासी समझ पाये कि असहिष्णु कौन हैं। वस्तुतः एक बहुमत से चुनी सरकार को सहन न कर पाना सबसे बड़ी असहिष्णुता है।
***************************** पूरी दुनियाँ में अपनी श्रेष्ठता एवँ स्वार्थपूर्ति के लिए विभिन्न समुदाय के लोगों में दूसरों के प्रति असहिष्णुता रही है और पीढ़ी दर पीढ़ी यह बढ़ती ही जा रही है। संभवतः यही असहिष्णुता भविष्य में विनाश का कारण बने क्योंकि हम एक दूसरे के लिए ही नहीं बल्कि अपनी धरती पहाड़ ,पर्यावरण ,जल ,वायु ,जीव -जन्तु सबके प्रति असहिष्णु होते जा रहे हैं।असहिष्णुता के एक से बढ़ कर एक गम्भीर विषय दुनियाँ के सामने हैं। अतः असहिष्णुता -असहिष्णुता का खेल खेलने वालों को सोचना होगा कि कौन सी असहिष्णुता की बात कर रहे हैं। दादरी एवँ बंगलुरू वाली लकीरों के सापेक्ष तो जम्मू कश्मीर में हिन्दुओं का नरसंहार व लाखों हिन्दुओं का घाटी से पलायन या सन चौरासी में श्रीमती इन्दिरा ग़ांधी की हत्या के बाद सिक्खों के नरसंहार की लकीरें बहुत बड़ी थीं। लगता है कि उस समय उन्हें असहिष्णुता की याद नहीं आई।बांग्ला देश की लेखिका तस्लीमा नसरीन ने ऐसा कुछ कह कर, कि भारत में जो मुसलमानों की बात करे वह धर्मनिरपेक्ष (सहिष्णु ) और जो हिन्दुओं की बात करे वह हिंदूवादी ( असहिष्णु ) ,ऐसा आईना दिखाया है कि तथाकथित आदरणीयों को अपनी कुरूपता के लिए पूरे राष्ट्र से क्षमा माँगनी चाहिए।
***************परन्तु केंद्र सरकार को भी विरोधिओं के मिथ्या आचरण व उनके उद्देश्य से सतर्क हो जाना चाहिए। असहिष्णुता ठण्डी पड़ेगी तो भ्रष्टाचार को गरमा जाय गा ,एक मंत्री का कोई वक्तव्य ठण्डा पड़ेगा तो किसी दूसरे मंत्री या भाजपाई का वक्तव्य उछाल दिया जाय गा। अर्थ व्यवस्था को गति देने के लिए जीएसटी जैसे कानून चाहिए तो राज्य सभा में बहुमत के बल पर वे ऐसा होने नहीं देंगे ,मुद्दों की कमी होगी तो प्रधान मंत्री को प्रवासी भारतीय बनायेंगे अथवा उनके पहनावे पर कटाक्ष करें गे और देश विदेश में ऐसा वातावरण बनायें गे कि मेक इन इंडिया की ऐसी तैसी हो जाय। संसद तो इस लिए चलने नहीं देंगे क्योंकि उनके शासनकाल में भाजपा वाले भी गतिरोध पैदा किये थे। ये लोग सौहार्द ,आर्थिक विकास एवँ रोजगार के अवसरों को बाधित करने का पुरजोर प्रयास करेंगे।इनके षड्यन्त्रों को निष्फल करने ,अपने चुनावी वादों को पूरा करने एवँ जनता से सक्रिय संवाद बनाये रखने में ही वर्तमान सरकार एवँ देश की प्रगति का मंगलकारी भविष्य छिपा है।
***************सारी दुनियाँ सहमत है कि गाँधी की अहिँसा सहिष्णुता की आदर्श अवस्था है और समाज में इसी की स्थापना के लिए असहिष्णुता के विरुद्ध हिंसात्मक संघर्ष होते हैं। यह प्रवृत्ति बहुदा दबती हुई तो पाई गई है परन्तु किसी भी संस्कृति में कभी भी समूल नष्ट होते नहीं पाई गई है। इसका कारण शायद इसी तथ्य में छिपा है कि सामाजिक होने के साथ ही मनुष्य एक जानवर है। फिर भी सामाजिकता के नाते मनुष्य यदि मनुष्य से मनुष्यता का व्यवहार करे तो असहिष्णुता न्यूनतर होती जायगी और मानवता गाँधी के सपनो वाले राम राज्य को प्राप्त कर लेगी।मानव जाति में भी जिन्हें समाज आदरणीय कहता है उन्हें आदरणीयता के मापदण्ड पर सदैव खरा उतरना होगा वरन रँगा सियार की कहानी सत्यार्थ होगी।इति श्री असहिष्णुता कथा।————– मंगलवीणा
******************************************************************************************

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply