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कश्मीर पर ऊहापोह

Jeevan nama
Jeevan nama
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***************कश्मीर की अशान्ति से पूरा देश बेचैन है। वहाँ की शान्ति के लिए हमारे सपूत सुरक्षा प्रहरी अपने जान की बाजी खेल रहे हैं तो दूसरी ओर आन्दोलनकारियों के साथ उनके बहकावे में आकर शान्ति भंग करने वाले भोले -भाले लोग भी हताहत हो रहे हैं। अवसर है, तो राजनेता ,विचारक ,विश्लेषक ,विशेषज्ञ और मीडिया के लोग भी मन माँगी मुराद पूरी कर रहे हैं। अधिकांश को समस्या समाधान की चिन्ता है तो कुछ को अपने प्रतिद्वंदियों को पटकने की। अभी राज्यसभा में कश्मीर पर पूरे दिन चर्चा हुई। माननीय सांसदों में किसी ने कश्मीरियों से दिली संबंध जोड़ने ,तो किसी ने ऐतिहासिक गलतियों की बात की। किसी ने पडोसी देश को कोसा तो किसी ने पाकिस्तान पोषित आतंकी संगठनों को। किसी ने जम्मू और लद्दाख के परिपेक्ष्य में कश्मीर समस्या की यात्रा कराया तो किसी ने सरकार को विफल बताया। माननीय गृह मंत्री का निचोड़ वक्तव्य आया कि अब पाकिस्तान से बात होगी तो सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर पर होगी। यह तो भविष्य बताएगा कि भविष्य क्या होगा। परन्तु यह कौन बताए गा कि कश्मीर अन्य राज्यों के विपरीत ,सविधान प्रदत्त अलगाव से या एक राज्य दो कानून से कब मुक्त होगा ? बहु आयामी अलगाववाद कश्मीर की नीयति बन गई है।धार्मिक अलगाववाद ,सामाजिक अलगाववाद ,राजनितिक अलगाववाद ,संवैधानिक अलगाववाद यहाँ तक कि सांस्कृतिक अलगाववाद ,सब के सब इस देश की मुकुटमणि से चिपक गए हैं।
***************यथास्थिति की बात की जाय तो भारत के हर राज्य व् जनपद में भारत के हर कोने के कम या ज्यादा परिवार मिल जाँयगे। कश्मीरी भी सर्वत्र मिल जाँयगे। जब कभी कर्फ्यू या प्राकृतिक स्थिति देश के किसी हिस्से में आती है तो पूरा देश वहाँ रह रहे अपने परिवार वालों ,मित्रो व परिजनों के लिए ब्याकुल हो उठता है परन्तु जब कश्मीर में ऐसा कुछ होता है तो वह ब्याकुलता केवल उन्ही परिवारों में होती है जिनके लाडले वहाँ जनजीवन और देश की सीमा सुरक्षा में लगे हैं या केवल उन्ही परिवारों को होती है जिनके परिजन वहाँ धार्मिक या पर्यटन यात्रा में फँस गए हों क्योंकि अन्य स्तिथियाँ घाटी केलिए लागू ही नहीं हैं।दूसरी ओर जब सुरक्षा जांबाजों को, वहाँ शेष भारत की आम नागरिक अनुपस्थिति, कश्मीरियत से अलग हिंदुस्तानी होने की अनुभूति देती है तो उन्हें अजीब लगता है कि देश अपना और लोग पराये। हम सभी जानते हैं कि कश्मीर की यह स्थिति थी नहीं ,बनाई गई है। इसके लिए लाखों पण्डित ,हिन्दू तथा सिक्ख परिवारों को पलायन के लिए विवश किया गया और भारतीयता को उखाड़ फेंका गया।
*************** आज की बची परिस्तिथि में भी इस राज्य के अधिकांश नागरिक शुद्ध भारतीयता से ओतप्रोत हैं और भारत के लिए कृतसमर्पित हैं ,परन्तु जब उनकी भावनाएँ बेलगाम बन्धक बनाई जा रही हों और सरकारें उन्हें संकट से उबारने में असहाय हों ,तब प्रतिबद्धता और निष्ठा दूसरे छोर की तरफ लुढके गी ही। एक राज्य यदि अपने नागरिकों को समानता एवं सुरक्षा की गारण्टी नहीं दे सकता तो उसके अलाप -प्रलाप की कोई विश्वसनीयता नहीं होती। क्या विडम्बना है कि कठोर कार्यवाही के अभाव में कश्मीर प्रताड़ित है और उसका लाभ उठाते हुए अलगाववादी दुस्साहस बढ़ाते जा रहे हैं। जम्मू ,लद्दाख या कश्मीर क्षेत्र के वे भारतीय जो अपने राज्य को पूर्णतया भारत के अन्य राज्यों जैसा देखना चाहते हैं,सांस्कृतिक एवं धार्मिक विविधता अपनी धरती पर उतारना चाहते हैं और चाहते हैं कि मेलजोल वाली हिंदुस्तानी झलक उनकी पहचान बने। परन्तु ऐसी अनुकूलता के अभाव में उनके साथ अन्याय हो रहा है।
***************सामान्यतया जब कश्मीर समस्या की चर्चा होती है ,तो सारी बातें परिकल्पना आधारित होती हैं कि यदि इस राज्य का विलय तात्कालिक अन्य राज्यों की भाँति भारत के गण राज्य में हुई होती तो ऐसा न होता ,यदि यह काम सरदार पटेल पर छोड़ा गया होता तो भारत कि पाकिस्तान वाला विकल्प या विवाद ही मिटा दिया गया होता ,यदि विभिन्न युद्धों में विजय के बाद हम पाकिस्तान की जीती हुई भूमि नहीं लौटाते और पाक अधिकृत कश्मीर को अपने कश्मीर में मिला लेते तो कश्मीर इधर -कश्मीर उधर का प्रकरण समाप्त हो गया होता या कि अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर हम अपने पाकिस्तान द्वारा हड़प लिए गए कश्मीर की बात पाकिस्तान की अपेक्षा ज्यादा आक्रामकता से उठाते तो पडोसी के हौसले पस्त होते। सब ठीक है ,परन्तु खोये जा चुके अवसर वर्तमान को समाधान नहीं दे सकते।
***************इसमें संशय नहीं कि वर्तमान आंदोलन को संभाल लिया जाय गा। अलगाववादी ,आतंकी और पाकिस्तान सभी परास्त होंगे। तात्कालिक तौर पर हमें सुरक्षाबलों के मनोबल और लाजिस्टक्स को हर तरह से बढ़ाये रखना चाहिए और प्रचार तंत्र सक्रिय कर नागरिकों को भरोसा देना चाहिए कि उनका अभियान आतंकवादियों व अलगाववादियों से है न कि देशवासियों से। घाटीवासियों से अपील कर उनकी सहायता ली जाय और यदि कोई गलती हो जाय तो उनसे क्षमा भी माँगी जाय क्योंकि वे अपने ही बंधु -बंधाव हैं। इस काम में सभी राजनीतिक दल बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। घाटी में जितने भी ग्रामीण ,कस्बाई या शहरी इकाइयाँ हैं ,उन्हें विभिन्न दलों से मिल कर पाँच -पॉँच प्रतिनिधियों का दल गोंद लें ,उनसे नियमित बैठक कर उनसे मेल -जोल करें और उनके विकास व हित को आगे बढ़ायें।साथ ही जम्मू व लद्दाख क्षेत्र का सर्वाङ्गीण विकास द्रुततम गति से किया जाय ताकि ये क्षेत्र उनके लिए अनुकरणीय बन सकें। जैसे ही कुंठा जाएगी ,समस्या भी तिरोहित हो जाय गी।
***************दीर्घकालिक समाधान उपायों में संविधान की धारा तीन सौ सत्तर का समापन है। बहुत कठिन कदम है परन्तु राष्ट्र हित में इस राज्य को अन्य राज्यों सा समरस बनाना ही होगा। पाकिस्तान प्रायोजित आतंक को उसे नष्ट करने की क्षमता से अधिक आक्रामकता से तहस=नहस करना होगा। इन आतंकियों से ज्यादा खतरा देशी छिप कर वार कर रहे देशद्रोहियों और लगाववादियों से है जो विभीषण भूमिका में हैं।उन्हें चिन्हित कर कठोरतम प्रतिक्रिया से गुजारना होगा।लक्ष्य बना कर शिक्षा ,रोजगार व् विकास को घाटी की धरती पर उतारना होगा। तभी कश्मीर की वादियों में भारतीयता मुस्कराएगी। इतिहास को ऐसे दिन की प्रतीक्षा रहे गी जब कश्मीरी मुस्लिम समुदाय के लोग पलायन कराये गए हिदू और सिक्ख परिवारों से मिलें गे और गले लग उन्हें अपने घरों में पुनर्स्थापित करें गे।————————————— मंगलवीणा
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अंततः
सभी सुधी पाठकों ,देशवासियों ,जागरण जंक्शन फोरम के सभी ब्लोगर्स व टिप्पणीकारों को स्वतंत्रता दिवस की ढेर सारी शुभ कामनाएं। भारतीय सीमा एवं अशांत कश्मीर में तैनात बीर जवानों को मिठाइयाँ व राखी पहुँचे तथा हर कश्मीरी भाई बहन को सौहार्द और शान्ति का सन्देश।हर भारतीय की अभिलाषा है कि हमारा मुकुट मणि हमारी आभा को चार चाँद लगाए। —– मंगलवीणा
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