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दीपावली

Jeevan nama
Jeevan nama
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*************** किसी भी पर्व के आगमन पर उसकी पृष्ठभूमि व परम्परा के स्मरण का भी अपना एक आनन्द है।अस्तु ,दीपावली ,दिवाली  या दीपोत्सव  विश्व के प्राचीनतम एवं लोकप्रिय  त्योहारों में एक है।आर्य संस्कृति के साथ प्रारूपित यह त्योहार उमँग और ख़ुशियों के साथ सबको आरोग्य ,धन,संपदा ,कौशल विकास  व कल्याण की कामना करने का अवसर प्रदान करता है।यह दुनियाँ की एकमात्र त्योहारी श्रृंखला है जिसमें पुरुषार्थ ,परार्थ ,परमार्थ ,विज्ञान ,अध्यात्म ,अन्धकार व प्रकाश ;सभी समाहित हैं।प्रमुख त्योहार के दिन, अमावस की अँधियारी को दूर भगाती दीपावलियाँ मानवीय उमंगों के साथ भीनी-भीनी ठण्ड की आंचल तले भारत भूमि पर ऐसी आकाशगंगीय छटा बिखेरती हैं मानो दरवाजे पर आहट देती शीत ऋतु का स्वागत कर रही हों।आज के व्यवहार में यह दीप सुन्दरी अपनी सम्पूर्ण मनोहारी परम्पराओं के साथ कार्तिक कृष्ण पक्ष की धनतेरस को सांध्यवेला में हुलसित होती इस धरा पर उतरती है और पाँच दिन पर्यन्त कुछ इस प्रकार जन -जन को रंग -विरंगी खुशियों से सराबोर करती और कर्मयोग की प्रेरणा  देती  वर्ष परिक्रमा की ओर  बढ़ जाती है।

***************विजय पर्व दशहरा के साथ ही दीपावली अपने आगमन की आहट दे देती है ।खेतों में धान ,ज्वार ,बाजरा ,उरद ,मूँग इत्यादि खरीफी फसलों की बालियाँ व फलियाँ सुनहरी हो उठती हैं और किसान को खलिहान चलने का संदेश देती हैं ।साथ ही वातावरण ,धरती और आकाश स्वच्छ होने का संकेत देने लगते हैं। फिर क्या सभी लोग अपने घर -द्वार ,गली-कूचा ,गौशाला ,घूर ,खेत -खलिहान व आस -पास की श्रमसाध्य सफाई करते हैं और अनाज को सीवान से खलिहान होते हुए घर लाते हैं।उपज के साथ नगरों में भी कृषिजन्य व्यवसायों का नया सिलसिला चल पड़ता है ।हाट बजार में अब तक गुड़ ,शक्कर ,फल , सब्जी इत्यादि की आमद भी जोर पकड़ लेती है ।साथ में स्वच्छ धरती ,सुथरे जलाशय ,समशीतोष्ण मौसम ,व्यवसाइयों को प्राप्त कारोबारी अवसर ,मजदूरों को प्राप्त त्योहारी ,कर्मियों को मिला बोनस और बेतन भी इस त्योहार में इन्द्रधनुषी आकर्षण भर देते हैं ।एक लोकोक्ति है कि सदा दिवाली संत घर ;जो गुड़, पय(दूध ), पुर्ना (अनाज ) होय ।ऊपर से सबके मन में यह दृढ विश्वास कि जैसा दीपावली का दिन वैसा पूरा वर्ष ।अतः लोग इस त्योहार की विविध एवं उत्कृष्ट तैयारी में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ते हैं ।
***************समय के साथ ग्रामीण एवं नगरीय परिवेश बदले हैं,आर्थिक तंतु बदल गए हैं, यहाँ तक कि स्नेह एवं दीप भी बदल कर मोमबत्ती, बिजली बल्ब की लड़ियाँ एवं लेज़र लाइट हो गए हैं, परन्तु अविरल भारतीय परम्परा से इस त्योहार को जीवंत स्नेह निरन्तर मिल रहा है और आज भी इसमें कोई ह्रास नहीं हुआ है। लगातार पांच दिनों तक चलने वाला यह पर्व कार्तिक महीने के कृष्णपक्षीय धनतेरस से चल कर शुक्लपक्षीय द्वितिया को विराम लेता है। हर हिन्दू परिवार धनतेरस को लक्ष्मी – गणेश की लघु प्रतिमा , कोई धन प्रतीक जैसे नया बर्तन, सोने या चाँदी का सिक्का , आभूषण तथा लड्डू – मिठाई बाज़ार से नकद क्रय कर घर लाता है। देर सांझ को शुभ -लाभ रूप लक्ष्मी – गणेश की दीप जला कर आराधना होती है।हिन्दू परिवारों का भरसक प्रयास होता है कि वे बड़ी खरीद -विक्री आज के दिन ही करें। अतः आज के दिन भारतीय बाजारों में करोड़ों करोड़ रुपये की धन वर्षा होती है और अनेकानेक गृहोपयोगी वस्तुएँ घरों में आती हैं। आज ही के दिन समुद्र मंथन से लक्ष्मी के साथ आरोग्य के देवता धनवन्तरि का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था । अतः औषधि विधा वाले आज धन्वन्तरि भगवान की पूजा करते हैं। धर्मराज यम के पूजन की भी प्राचीन परंपरा चली आ रही है।
*************** दूसरे दिन छोटी दिवाली या नरकासुर चतुर्दशी मनाने की परंपरा है, जिसे नरक नाम के असुर को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए वचन के अनुपालन में समस्त भारतवंशी हजारों वर्षों से बड़ी श्रद्धा से निभाते चले आ रहे हैं। इस क्रम में साँझ को पुराने दीप में तेल – बाती कर यम का दीया दरवाजे के बाहर रखा जाता है। कुछ पंचांग आज के दिन पवन पुत्र हनुमान की जयंती का भी उद्घोष करते हैं। अयोध्या में यह पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।
***************मुख्य दीपावली पर्व अमावस्या की संध्या बेला से प्रारंभ होता है। यह पर्व सर्वप्रथम,इसी दिन जगत जननी माता सीता और लक्ष्मण के साथ लंका विजयोपरांत मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्री राम के घर लौटने पर, अयोध्यावासियों ने मनाया था। इस दिन संध्यावतरण होते ही लोग सर्व प्रथम देवालयों में दीप जलाते हैं, फिर ग्रामदेवता, कुल देवता एवं घूर को दीप प्रकाश समर्पित करते हैं। तत्पश्चात घर, बाहर, सर्वत्र दीपावली ही दीपावली। अँधेरी रात में दीप प्रकाशों से दूर भागती , सिमटती अंधियारी की मनोरम छटा देखते ही बनती है। जिसने प्रकाश पुंजों को घनी अंधियारी पर विजय पाते न देखा हो उन्हें ऐसे दृश्य की एक झलक पाने का यत्न करना चाहिए। दीपावली सजाने के बाद पूरा कुनबा उमंग एवं सौहार्द के वातावरण में पकवान, तले सूरन (जमीकंद) एवं मिठाई का आनद उठता है। मान्यता है कि यदि हिन्दू दीपावली के दिन सूरन न खाए तो उसका अगला जन्म छुछुंदर या इस तरह के किसी नीच योनि में हो सकता है। मौज मस्ती करते हुए देर रात्रि में विद्यार्थी अपनी पुस्तकों को, पंडित अपनी पोथी को, धनवान अपने धन को, विद्वान् अपनी वाणी को, व्यवसायी अपनी बही को, वैद्य अपनी औषधि शास्त्र को, तांत्रिक अपने तंत्र विद्या को, चोर अपनी चोरी को,जुआरी अपनी द्यूत को जगाते हैं। अल्पना किये हुए जगमगाते घर पूरी रात्रि खुले रहते हैं क्योंकि मान्यता है कि लक्ष्मी जी का रात्रि के उत्तरार्ध में सर्वाधिक स्वच्छ ,आलोकित और सज्जित घरों में पदार्पण होता है। दादी माँ जलते दीप को परई से ढँक कर इस रात काजल की कालिख तैयार करती हैं जिससे लोग वर्षपर्यंत अपनी आँखों की ज्योति दुरुस्त रखते हैं। भोर मुहूर्त में घर की वरिष्ठ महिलायें सूप की थाप से दरिद्र महाराज को घर के कोने -कोने से खेद कर सीवान तक ले जाती हैं और वहीँ इकठ्ठा होकर सभी सूपों को जला देती हैं।भोर में जब सूप बजाती महिलाएं घरों से निकलती हैं तब उनकी कोरस की रागधुन सुनते ही बनती है ।लोग कहते हैं कि दरिद्र भगाए सूप को ततक्षण जला कर तापने से सारे चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं और ब्यक्ति भब्यता को प्राप्त होता है ।इस प्रकार लोग दरिद्रता को दूर भगा लक्ष्मी कृपा सिंचित नव प्रभात की ओर बढ़ते हैं ।बंगाल में इस रात काली पूजा की प्रबल प्रथा है ।परन्तु इतने सुन्दर पर्व को, अत्याधिक पटाखेबाजी जनित, ध्वनि प्रदूषण और पर्यावरण छति ने बहुत कलंकित किया है। अरबों रुपये स्वाहा कर हम अपने श्रवण शक्ति खोने ,दमा -खाँसी को आमंत्रित करने ,वायु को दूषित करने व आस -पास गन्दगी फ़ैलाने का उपक्रम करते हैं।जूए का खेल भी इस त्योहार का दामन नहीं छोड़ रहा हैं।ये व्यवहार के नकारात्मक पहलू हैं। अतःहमें इस पावन पर्व को ऐसी कुरीतियों से मुक्त करना चाहिए।
***************चौथे दिन अर्थात कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा कों गोवर्धन पूजा होती है, जिसमें विधान के अनुसार मंदिरों में अन्नकूट होता है। गोवर्धन पूजा का स्पष्ट व्यवहार है कि पूजा उसकी की जाये जो बेहतर जन सेवी हो। वनिक समुदाय इस दिन को नव वर्षारंभ के रूप में मनाता है। सामान्यतः आज लोगों का इष्ट मित्रों से मिलना – जुलना होता है और होती है सबके पास सबके लिए सद्भावना एवं शुभेच्छा ।
***************पांचवे दिन एवं अंतिम पायदान पर भैया-दूज या यम- द्वितिया का त्योहार मनाया जाता है जिसके पृष्ठ भूमि में धर्मंराज यम एवं उनकी बहिन यमी (यमुना) की एक स्नेहमयी पौराणिक गाथा है।दूसरी स्मरणीय गाथा यह है कि जब नरकासुर का बध क़र श्री कृष्ण घर लौटे तो आज ही के दिन लाडली बहन सुभद्रा ने उनके मस्तक पर अक्षत, कुमकुम, रोली लगाकर स्वागत किया एवं उन्हें मिठाईयां खिलायीं थी । भैय्या दूज भाई – बहनों के बीच मधुर रिश्तों का एहसास कराने एवं एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को याद दिलाने व निभाने का व्रत लेने वाला पर्व है। इस दिन कायस्थ समाज चित्रगुप्त महाराज,जो धर्मराज यम के महा लेखाकार माने जाते हैं, की पूजा- आराधना करता है।लोग इसे कलम पूजा भी कहते हैं।इन मान्यताओं के अलावा देश के विभिन्न अंचलों में दिवाली क़े साथ अन्य बहुत सी किम्बदंतियाँ व कथाएँ जुड़ी हुई हैं जिनके अनुसार रिवाजें भी मनाई जाती हैं। इस प्रकार व्यवहार से मंडित दीपावली , देव दीपावली को आमंत्रित करते हुए, विदा हो जाती है और मानवता को ऊर्जा, उमंग एवं साहस दे जाती है ताकि शीत ऋतु में उद्यमिता एवं कृषिधर्मिता सानुकूल रहे।सत्य एवं प्रकाश के विजय पर दीपमालिका सजाने वाली इस शानदार दिवाली को बारंबार नमन।
——————————शुभं करोति कल्याणं ,आरोग्यं धन संपदा ।
——————————शत्रु बुद्धि विनाशाय ,दीप ज्योति नमस्तुते ।
परन्तु —- जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना
अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी
निशा की गली में तिमिर राह भूले।(श्री गोपाल दास नीरज )
दिनाँक 27 अक्टूबर 2016 संवत 2073 ——————————- मंगलवीणा

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अंततः
***************सभी सनेही पाठकों ,मित्रों एवं शुभेच्छुओं को धनतेरस ,धन्वन्तरि जयंती ,छोटी दिवाली ,हनुमद्जयन्ती ,शुभ दीपावली ,लक्ष्मी -गणेश पूजनोत्सव ,गोवर्धन पूजा ,भैयादूज ,यमद्वितिया , चित्रगुप्त पूजनोत्सव एवं नव वर्षारम्भ की ढेर सारी शुभ कामनायें।इस अवसर पर पर्व के सन्देश को स्वीकारते हुए हमें स्वच्छता, आरोग्य एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित होने का ब्रत भी लेना चाहिए। शुभम अस्तु।———————————————————————————————– मंगलवीणा

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