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… क्योंकि भारत को दुनिया में अपना मुकाम पाना है

Jeevan nama
Jeevan nama
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आज की तिथि में गुजरात हमारे देश के कतिपय सर्वाधिक विकसित राज्यों में से एक है और हमारी प्रगति का पर्याय है। सकल घरेलू उत्पाद या प्रति व्यक्ति सालाना आय अथवा खुशहाल जिंदगी के मानक आंकड़ों की बात न कर, केवल विभिन्न राज्यों से गुजरात जाकर वहां अपनी जीविका चलाने वालों की संख्या तथा उस राज्य के विकास पर उनकी राय लेकर गुजरात विकास की चकाचौंध करने वाली सच्चाई समझी जा सकती है। न्यूनाधिक सभी राज्यों, विशेषतया पिछड़े राज्यों के लोग गुजरात के विभिन्न शहरों या कस्बों में काम करते मिल जाएंगे, जबकि व्यवसाय से इतर जीविका के लिए अन्य राज्यों में गुजराती न के समतुल्य मिलेंगे। यही है गुजरात का विकास मॉडल, जो आम लोगों को दिखता है।


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परन्तु हमारे देश के तथाकथित यायावर नेताओं को गुजरात में कहीं विकास दिखता ही नहीं। सन 2014 तक देश की गद्दी जुगाड़े इनके कृत्य जन जन को पता हैं फिर भी बगुला भगत सा विश्वास पाले गुजरात के मैदान में धर्म, जाति, सवर्ण, पिछड़ों और दलितों का जहर घोलकर ये विजय की आशा पाल रहे हैं। इन हारे हुए काँग्रेसी खिलाड़ियों के पास हारने को कुछ नहीं है, पर खेल बिगाड़ने को बहुत कुछ है। वहीं, गुजरात की जनता एक बड़ी कसौटी पर चढ़ी हुई है। वह या तो भारतीय जनता पार्टी को विजय देगी या पराजय।


देश के हर राष्ट्रप्रेमी नागरिक की आकांछा है कि गुजरात के लोग भाजपा को विजयश्री पहनाकर नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे आर्थिक, सामाजिक तथा सामरिक सुधारों पर मुहर लगायें, ताकि देश विदेश को एक संदेश मिल सके कि जिस मोदी ने वर्षों तक गुजरातियों की बेहतरी के लिए साधना किया और जिस जनता ने उन्हें आज प्रधानमंत्री के पद तक पहुँचाया, वे आज भी थोड़ी दुश्वारियों के बावजूद एक-दूसरे के लिए चट्टान की भाँति खड़े हैं। याद रहे कि आर्थिक उतार-चढ़ाव तथा मत भिन्नता के बाद भी मोदी जी राष्ट्रवाद, राष्ट्रभक्ति, राष्ट्रगौरव व सर्वोपरि राष्ट्र वाली अवधारणा के बेजोड़ नायक व आशा के किरण पुञ्ज हैं। इस तथ्य को हम किसी भी पल दृष्टि से ओझल नहीं कर सकते, क्योंकि सावधानी हटी कि देश लुटा।


दूसरी अर्थात पराजय की स्थिति में स्थिति के कारण महत्वपूर्ण हो जाएंगे और सारे विपक्षी नेता एक होकर देश को सन चौदह से पूर्व की स्थिति में घसीट ले जाने व सत्ता सुख के बंदरबाँट का पुरजोर प्रयास करेंगे। फलतः बचे डेढ़ वर्षों में केंद्र सरकार को उग्र विपक्षी विरोध का सामना करना होगा, जिससे सरकार की दृढ इच्छाशक्ति डगमगा सकती है। हार भाजपा की होगी परन्तु खुशियाँ विघटनकारी नेता व पार्टियाँ मनाएँगी।


जो कारण मतदाताओं को भाजपा के विरोध में जाने को प्रेरित कर सकते हैं, वे क्रमशः पाटीदारों का आरक्षण के नाम पर प्रबल विरोध, दलितों में उकसाया गया छद्म असंतोष, व्यवसाय पर जीएसटी का प्रभाव, स्थानीय भाजपा नेताओं के प्रति विकर्षण तथा सबसे ऊपर राज्य स्तर पर मोदी जी जैसे चमत्कारी नेता की अनुपलब्धता हैं।


निश्चय ही राष्ट्रवाद की छाँव में भाजपा यह भूल रही है कि सरकार अपनी जनता के लिए एक चुनी हुई कल्याणकारी संस्था होती है और बिना कोई संकट की स्थिति आए वह जनता को आर्थिक बेहतरी के बदले आर्थिक बदहाली नहीं दे सकती। आम जन की जेब पर दबाव पड़ेगा तो समर्थन भी घटेगा। फिर भी दबाव ने कोई लक्ष्मण रेखा नहीं पार किया है कि जिस दल के सरकार ने गुजरात में वर्षों तक बेहतरीन परफॉर्मन्स दिया, गुजरात को आधुनिक गुजरात बनाया व देश को मोदी जी जैसा अद्वितीय नायक दिया, उसे राज्य से सत्ताच्युत कर दिया जाय।


सरकारी सेवा में रहते हुए 1989 से 1992 तक मुझे गुजरात के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करने व वहाँ के विभिन्न वर्ग व समुदाय के लोगों के साथ जब संपर्क का अवसर मिला, तो समझ आई कि प्रभु श्रीकृष्ण को द्वारकापुरी रास क्यों आई या गाँधी जैसे सत्य एवं अहिंसावादी और पटेल जैसे लौहपुरुष वहीं क्यों उपजे। वहीं समझ सका कि पानी की कमी से जूझते प्रदेश में अमूल जैसी श्वेत क्रान्ति, खूबसूरत दस्तकारी, वस्त्रोत्पादन, हीरा उद्योग या अन्य भारी उद्योग क्यों परवान चढ़ पाए।


वास्तव में शुद्ध भारतीय परिवेश व मीठासमयी संस्कृति को संजोए हुए गुजरातियों में गजब की उद्यमिता एवं संघर्ष क्षमता है। उन्हें सरकार से मात्र सरकार जैसी व्यवहार की अपेक्षा रहती है। उन्हें सरकार से सार्वजानिक सुविधा, संरचना, सुरक्षा और व्यवसाय परक वातावरण चाहिए न कि व्यक्तिगत सुविधाए। इस राज्य में मोदी जी के सफलता का मन्त्र भी यही रहा है। आज के संशय का कारण भी स्थानीय भाजपा नेताओं द्वारा इस मंत्र का थोड़ा बहुत विकृत किया जाना लगता है।


सभी धन ऋण विचारों के समायोजनोपरान्त कहा जा सकता है कि मोदी जी के बाद की प्रदेश सरकार यदि पूर्ववत जनता के प्रति संकल्पित रही है और स्थानीय भाजपा के नेता जनता से मित्रवत संवाद में रहे हैं, तो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए गुजरात के मतदाता भाजपा को विजय श्री देंगे। उभरते भारत में हो रहे बदलाव के दौर में जीएसटी से उत्पन्न अस्थाई व्यावसायिक कठिनाइयों के कारण भी वे भाजपा को नहीं नकारेंगे।


हिमाचल प्रदेश की भांति वहां एन्टी इनकम्बेंसी जैसा कोई गुणक भी काम नहीं करेगा। ऐसे में भाजपा के हार की सम्भावना बहुत दूर तक नहीं है। हारेगी तभी यदि सत्तारूढ़ सरकार ने सरकार के लिए निर्धारित लक्ष्मण रेखा का अतिक्रमण किया होगा। जीत से भाजपा की केंद्र सरकार के आर्थिक सुधारों व विकास कार्यक्रमों को और तीव्र आवेग (मोमेंटम) मिलेगा अन्यथा हार, आवेग में अस्थाई ठहराव का, गुजरात से एक सायरन होगा। फिर सिंहावलोकन की स्थिति बनेगी और पुनः नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में इन्हीं सुधारों व विकास को प्रचंड समर्थन मिलेगा, क्योंकि भारत को दुनिया में अपना मुकाम पाना है और हम आम भारतीयों के लिए सबसे पहले भारत है।

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