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चक्रव्यूह में फँसता भारतीय इतिहास

Jeevan nama
Jeevan nama
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***************मध्यकाल से अब तक भारतीय इतिहास के तोड़ मरोड़ का क्रम जारी है। पद्मावती नाम के चलचित्र पर इस समय चल रहा विवाद इसका ज्वलन्त उदहारण है।इतिहास में रूचि रखने वाले हैरान हैं कि हजारों क्षत्राणियों के साथ जौहर करने वाली महारानी पद्मावती के चरित्र में फिल्म बनाने वालों ने मनोरंजन का कौन सा विषय गढ़ लिया कि फिल्माँकन कर दौलत बटोरने की सोच ली। भारतीय इतिहास में हाथ डालने से पहले इन फिल्मकारों को भारतीय सिनेमा के इतिहास को याद कर स्वयँ झेंप लेना चाहिए कि ये लोग मनोरंजन को राजा हरिश्चन्द्र से पद्मावती तक की यात्रा में कहाँ से कहाँ पहुँचा दिए।शायद निर्माता और उसके कलाकारों को अनुभूति नहीं कि पद्मावती किन उच्च भारतीय आदर्शों का प्रतिनिधित्व करती हैं।यदि किसी फिल्म निर्माता को ऐतिहासिक पद्मावती पर फिल्म बनानी है तो वह बनाने को तो स्वतन्त्र है परन्तु उसे शत प्रतिशत यह सुनिश्चित तो करना ही होगा कि उसकी अभिनेत्री हूबहू पद्मावती का चरित्र अभिनीत करे। उसे रंचमात्र भी चरित्रान्तर या स्वयँ नायिका बनने का अवसर नहीं दिया जा सकता है। उन्हें बहुत स्पष्ट होना होगा कि वह पद्मावती का अभिनय कर रही हैं न कि वे स्वयँ किसी फिक्सन ,गल्प या दंतकहानी की नायिका हैं।

*************** फिल्मों में अभिनय करने वाले लोग हमारे समाज या इतिहास के नायक -नायिका या हीरो- हीरोइन नहीं हैं। ये मात्र अभिनेता और अभिनेत्री हैं।जिस पद्मावती फिल्म पर आज पूरे देश में विवाद व विरोध है वह पद्मावती भारत की ऐतिहासिक एवँ सांस्कृतिक गौरव की अद्वितीय नायिका हैं। उन्हें फिल्म निर्माता भन्साली ने अपनी कल्पना से नहीं उपजाया है कि व्यावसायिक हित में उसे जैसा चाहें वैसा गढ़ दें।अतः उन्हें यह छूट बिल्कुल नहीं मिलती कि हमारे ऐसी बेजोड़ नायिका के व्यक्तित्व को कहीं से भी हल्का करें। पद्मावती मनोरंजन नहीं गौरव गाथा की प्रकाश पुञ्ज हैं। पद्मावती वह गौरव गाथा है जिसे चित्तौड़ में अनुभव किया जा सकता है , राजपूताने में आज भी भाटों -चारणों से सुना जा सकता है,कर्नल टाड ,ओझा या इतिहासकारों को पढ़ा जा सकता है या मालिक मुहम्मद जायसी के पद्मावत को गाया जा सकता है।

***************किसी भी देश की जनता एवँ उनकी सरकारों का प्रथम कर्तव्य होता है कि वे अपने इतिहास को किसी दशा में विकृत या निज संस्कृति आक्षेपी न होने दें ताकि पीढ़ियाँ उस पर गर्व कर सकें ,उससे प्रेरित हो सकें और उनकी संस्कृति अबाध आगे बढ़ती रहे। यह ठीक है कि अतीत में भारतीय प्रायद्वीप की परिस्थितियाँ बहुत विषम थीं और इतिहास भी छोटे छोटे भूखण्डों में विभक्त होता रहा और इसका लाभ उठाते हुए विदेशी हमलावरों,मुग़लों तथा बाद में अंग्रेजों ने भी भारत के इतिहास को ऐसे अंकित करने का प्रयास किया कि हम भारतीयों को हमारा अतीत लज्जाजनक लगे और बहुसंख्यकों में हीन भावना पनपती रहे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बामपन्थी ,काँग्रेसी ,मुस्लिमपंथी एवँ तुष्टिपंथी – इतिहासकार भी एक निर्दिष्ट उद्देश्य पूर्ति के लिए हमारे इतिहास को पूर्ववर्तियों की दिशा में घसीटते रहे। ऐसे लोगों का सुनियोजित प्रयास रहा है कि मध्यकालीन आक्रमणकारियों और नेहरू एवँ उनके परिवार जैसे लोगों की नायक वाली विरासत स्थापित हो सके तथा राणा प्रताप ,सुभाष चन्द्र बोस और बल्लभ भाई पटेल जैसे लोग इतिहास पटल पर मद्धिम होते जाँय । यहाँ तक कि इतिहास और हिन्दुत्व के खलनायकों को नायक और नायकों को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने का क्रम जारी है।लोग भूले नहीं हैं कि हाल में सत्ताधारी काँग्रेस द्वारा बैंगलुरु में टीपू सुल्तान की जयन्ती मनाई गई। ये वही टीपू सुल्तान थे जो धुर हिन्दू विरोधी थे और तलवार के बल पर लाखों हिन्दुओं का धर्म परिवर्तन कराया था।

*************** इस तरह की मानसिकता से प्रमाणित होता है कि भारतीय इतिहास ,समृद्ध सांस्कृतिक विरासत व प्राचीनतम सभ्यता को लगातार चोट पहुँचाने का प्रयास जारी है और फिल्म निर्माता संजय लीला भन्साली इसकी अद्यतन कड़ी हैं।बहुसंख्यकों की सहनशीलता का लाभ उठाते हुए ये लोग स्वार्थी इरादों के साथ इतिहास के गर्भगृह में घुसकर उसे नष्ट भ्रष्ट करने का दुस्साहस दिखाने लगे हैं।रानी पद्मावती ; बाजीराव की मस्तानी , वैशाली की नगर बधु,आम्रपाली या चित्रलेखा ; नहीं हैं अतः उनका फिल्मांकन भी वैसे नहीं हो सकता कि भंसाली अलाउद्दीन खिलजी के रूप में स्वप्न लोक पहुँचे और अप्रतिम सुंदरी पद्मावती को नृत्य करते देंखें। भारतीय सिनेमा ने हमारे नैतिक मूल्यों को बहुत हानि पहुँचाया है। चलचित्र जगत के लोग बहुधा कहते हैं कि वे दर्शकों को वही दिखाते हैं जो दर्शक देखना चाहते हैं। फिर सिनेमा वालों को मालूम हो जाना चाहिए कि वे भन्साली द्वारा बनाई गई पद्मावती बिलकुल नहीं देखना चाहते हैं और ऐसे सिनेमा न बनाये जाँय।वर्तमान रोष तो एक चेत वाणी है कि आने वाले समय में हमारे पौराणिक ,धार्मिक ,सांस्कृतिक एवँ ऐतिहासिक नायक ,नायिकाओं एवं अन्य चरित्रों के चित्रण में छेड़ छाड़ का विरोध और प्रचण्ड होता जाय गा।

***************परिस्थितियाँ करवट ले चुकी हैं। आज पूरी दुनियाँ में हमारी उत्कृष्ट मानवतावादी सोच , संस्कृति ,दर्शन ,विरासत और प्रतिभा का डंका बजने लगा है और हम भारतवासी भारतीय कहलाने पर गर्व कर रहे हैं। देशवासियों और नई पीढ़ी को राष्ट्र के आतंरिक घातियों की समझ हो चुकी है और वे समय समय पर विरोध व प्रदर्शन कर ऐसे लोगों को सँभल जाने का सन्देश दे रहे हैं। सरकारें भी ऐसे षड्यंत्रकारियों पर नियंत्रण की दिशा में काम कर रही हैं।अतः समय की माँग है कि मनोरंजन अपने को मनोरंजन की सीमा में समेटे हुए चले तथा हमारे किसी भी अतीत और वर्तमान के नायक या नायिका के चरित्रान्तर का प्रयास न करे। लोकतंत्र तभी परिपक्व माना जाता है जब उसके नागरिक स्वतः अनुसाशन का आचरण करें और विरोध की स्थिति ही न बने। तब तक यदि हमारे इतिहास को चक्रव्यूह में फँसाया जायगा तो व्यूह रचने वाले नई पीढ़ी द्वारा बुरी तरह पराजित होंगे।

———————————————————————————————-मंगलवीणा

वाराणसी :दिनाँक 19 दिसम्बर 2017

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अन्ततः

**हेमन्त बीतने जा रहा है और जाड़े की दुंदुभी बज उठी है। जो वातावरण शादियों के रेलम रेल व गुजरात के चुनाव से ही गरम था वह क्रमशः खरमास (15 दिसम्बर से प्रारम्भ ) व 18 दिसम्बरागमन के साथ ठंढा पड़ चुका है और बढ़ती ठंढ में अब ऊनी पहनावे के साथ कम्बल रजाई से ही गर्मी की आस है।

**भला हो गुजरात के उन मतदाताओं का जिन्होंने गुजरात मॉडल को बचा लिया और हमारे विश्वख्यात नेता नरेंद्र मोदी के साख को गृहराज्य में आँच नहीं लगने दिया।आशा है भाजपानीत सरकार गहन विश्लेषण करे गी और लोकहित की ओर तेजी से अग्रसर होगी। कुछ ऐसी शक्तियां भाजपा के अन्दर अवश्य हैं जो उससे जनाकांछा की शनैः शनैः अनदेखी करा रहीं हैं। यदि भाजपा नहीं संभलती है तो सोच ले कि प्रधान मंत्री जी के लिए जनता कब तक अपने अहित को सहन कर पाए गी।

**आगे इस ब्लॉग के माध्यम से सभी सुधी पाठकों को क्रिस्मस पर्व की शुभ कामनायेँ एवँ हार्दिक बधाई। हो सके तो जिन गर्म कपड़ों को अब हम न पहनते हों , जरुरतमन्दों को ढूंढ़ कर उन्हें सादर हस्तगत करें। इस छोटे प्रयास से मानवता की बड़ी सेवा होगी।प्रणाम।—————–मंगलवीणा

वाराणसी ;दिनाँक 19 दिसम्बर 2017

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